Monday, 2 December 2024

मैं गुनहगार हूं।

मैं गुनहगार हूं,
बेशक तुम भी हो,
मेरे गुनाहों में तुम्हारी 
पूर्ण भागीदारी है,
और तुम्हारे में मेरी,
हम बुद्धिजीवियों की बुद्धि
सिर्फ यहीं तक सीमित है
कि अपने लिए मनोरंजन
और सुविधाएं कहां से बटोर सके,
इससे ऊपर की बातें सब ढोंग है,
हम अंधे हो चुके है
हम देख नही सकते की हमारे आस पास
हमारे अलावा कौन खुश है,
खैर प्रकृति और अन्य जीवों 
के इतने शोषण करने के बावजूद भी
पूर्णत खुश तो हम भी नही है!
कितने घर उजाड़ कर 
एक नींव रखी है हमने,
किसी का घोंसला 
हमे कूड़ा लगता है,
सरेआम कोई जानवर कचरा
खा कर मर जाता है
हमे ये आम लगता है,
प्रकृति हमारे साथ एक तरफा
रिश्ता निभा रही है,
हमारी पूरी मानव जाति
एक तरफे रिश्ते की बुनियाद पर टिकी है,
हम सभी जन्मजात अपराधी है,
और इसका कलंक हमारे चेहरे
से कोई नही मिटा सकता।

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