जो बेबाकी से बहे,
अधर से चिपक अंतिम
उड़ान भरे,
जो एक कतार में वादियों
में कूद जाए,
कंचन अलंकार चुराकर
आसमां को चिढ़ाए,
जो कहनी है उसे
वो हर बात कहे,
एक कविता कहनी है मुझे,
जो बेबाकी से बहे।
जो मुक्त हो भय से
अस्तित्व के,
जो ज्यों की त्यों आंखो
में उतर जाए,
पतझड़ के पत्तो सी छूने
से बिखर जाए,
जो गढ़नी है उसे
वो हर बात गढ़े,
एक कविता कहनी है मुझे
जो बेबाकी से बहे।
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