Sunday, 26 April 2020

अँधेरा उजाला !



उजालों के सामने अक्सर अंधेरों
को चुन लिया करता हूं मैं,
ख्वाब लाखों एक ही रात
में बुन लिया करता हूं मैं,
ये सन्नाट पहरे जो
रातों पर लगे है,
हमदर्द बन इनका हाल
सुन लिया करता हूं मैं।
मैं ढूंढ लेता हूं करार अपना
इन अंधेरों में ही,
उजालों ने कब किसे तवज्जों दी है?
कैसे समेट लेता है ये अंधेरा सब यूहीं,
उजालों में तो बस मशक्कत ही है।
इन काली  हवाओं की भीनी खुशबू
मुझे कुछ कह जाया करती है,
वो तारो की धीमी रोशनी
मेरे संग रह जाया करती है,
वो आधा सा चांद जैसे
बादलों से पर्दा करता है,
वो मीठी ठंड का झोंका
मेरी रूह को स्पर्श करता है,
मानो, हर चीज सिर्फ मुझसे
प्यार किया करती है,
शायद इसीलिए,
ये रातें हर बार मुझे
चुन लिया करती है।।

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