चल जज़्बात बेचते है,
कल तक कौन रुके?
इन्हें आज बेचते है।
रख ' कल ' को गिरवी,
अपना ' आज ' बेचते है।
सवेरे तो बिक ही चुके है सभी के,
जो रातें रह गई है,
वो रात बेचते है |
बहुत कुछ बिक चुका,
अब बहुत कम बाकी है,
जो बिका, जो बचा,
उसका हिसाब कौन रखे,
चल सब बेहिसाब बेचते है |
जो ख़्वाब अमर रहे है हमेशा,
अब उनका यहां काम ही क्या है,
चल वो ख़्वाब बेचते है।
पंखो की कीमत तो लग ही चुकी है,
एक आसमां बचा है यहां,
चल वो आसमां बेचते है |
अपने ज़मीर का कपड़ा बिछाकर,
कुछ उम्मीद रखलो..
कुछ बेबसी..
बातो के खिलौने रखलो..
और अपनी हर हंसी..
वो गम के टुकड़े भी
जो कभी बटें नहीं..
एक ज़िंदा टीस..
जो कभी मिटी नहीं..
अपनी हर सांस..
और तुम खुद।
सब बिकता है संसार के मेले में,
आओ इन्हें सरेआम बेचते है,
चल जज़्बात बेचते है | |

जीवन की कड़वी सच्चाई, जिसे हम समझना नहीं चाहते|
ReplyDeleteSuperb Saksham👌👍🏻
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