Saturday, 10 October 2020

ख़्वाब !



मैं मुड़ा,

मेरी आँखे स्थिर थी,

मेरा मन और पैर दोनों 

एक समान थे, 

एकदम स्तब्ध...!!


मुड़ने से पहले मैं कुछ

निहार रहा था,

वहाँ शोर था,

बहुत शोर,

जैसे कोई जश्न हो,

मुड़ते ही,

वो शोर कम हो गया,

कुछ कदम बढ़ाए

तो शोरगुल गहरे सन्नाटे

में तब्दील होने लगा।


वो शोर मेरी सांसो का था

और जश्न मेरे ख्वाबों का,

थोड़ी दूर पर ज़िन्दगी खड़ी थी,

और मानो वक़्त ने पहली दफा

फ़ुरसत ली थी,

बस कुछ बहुत सुंदर सवाल

मेरे आगे तैर रहे थे,

जिनका जवाब जानने की 

मुझे कोई उत्सुकता नहीं थी|


एक सुंदर एहसास हवा बनकर

मेरे इर्द गिर्द घूम रहा था,

जैसे वो मेरे लिए हैं

मगर मेरा नहीं है,

हर शोर से दूर,

हर ख्वाब से दूर,

ज़िन्दगी ने मुझे गले लगा लिया | |


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