Monday, 2 December 2024

खुशबू

मुझे खुशबू आती है
बीते हुए कल की,
बार बार, 
वो मुझे खीच लेती है
अपनी तरफ
जैसे आज है ही नहीं,
जैसे सत्य सिर्फ कल में छिपा है
एहसासों से भरपूर,
जिसे महसूस करते ही मैं 
छू लूंगा आखिरी छोर को,
पुरानी धूप की खुशबू,
पहली बार कुछ घटने पर
अंदरूनी खुशी की खुशबू,
कुछ आवाजों की खुशबू,
नितांत एकांत की खुशबू,
खुशबू उस शाम की
जो कभी बीती ही नहीं,
खुशबू उस रात की
जो ख्वाब बिना ही बीत गई,
ये अनंत खुशबू,
ये खुशबू ही प्रमाण है
कि हम कभी थे
पूर्ण रूप से थे,
किंतु ये एहसास लघु है,
देखते ही देखते
मैं मृग हो जाऊंगा,
और ये खुशबू कस्तूरी,
और जीवन रूपी जंगल 
में मैं तलाश में रहूंगा
सिर्फ खुशबू के
जिसका स्त्रोत मैं खुद हूं।



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