Monday, 2 December 2024

मैं गुनहगार हूं।

मैं गुनहगार हूं,
बेशक तुम भी हो,
मेरे गुनाहों में तुम्हारी 
पूर्ण भागीदारी है,
और तुम्हारे में मेरी,
हम बुद्धिजीवियों की बुद्धि
सिर्फ यहीं तक सीमित है
कि अपने लिए मनोरंजन
और सुविधाएं कहां से बटोर सके,
इससे ऊपर की बातें सब ढोंग है,
हम अंधे हो चुके है
हम देख नही सकते की हमारे आस पास
हमारे अलावा कौन खुश है,
खैर प्रकृति और अन्य जीवों 
के इतने शोषण करने के बावजूद भी
पूर्णत खुश तो हम भी नही है!
कितने घर उजाड़ कर 
एक नींव रखी है हमने,
किसी का घोंसला 
हमे कूड़ा लगता है,
सरेआम कोई जानवर कचरा
खा कर मर जाता है
हमे ये आम लगता है,
प्रकृति हमारे साथ एक तरफा
रिश्ता निभा रही है,
हमारी पूरी मानव जाति
एक तरफे रिश्ते की बुनियाद पर टिकी है,
हम सभी जन्मजात अपराधी है,
और इसका कलंक हमारे चेहरे
से कोई नही मिटा सकता।

एक कविता कहनी है मुझे

एक कविता कहनी है मुझे,
जो बेबाकी से बहे,
अधर से चिपक अंतिम
उड़ान भरे,
जो एक कतार में वादियों
में कूद जाए,
कंचन अलंकार चुराकर
आसमां को चिढ़ाए,
जो कहनी है उसे
वो हर बात कहे,
एक कविता कहनी है मुझे,
जो बेबाकी से बहे।
जो मुक्त हो भय से
अस्तित्व के,
जो ज्यों की त्यों आंखो
में उतर जाए,
पतझड़ के पत्तो सी छूने
से बिखर जाए,
जो गढ़नी है उसे
वो हर बात गढ़े,
एक कविता कहनी है मुझे
जो बेबाकी से बहे।

खुशबू

मुझे खुशबू आती है
बीते हुए कल की,
बार बार, 
वो मुझे खीच लेती है
अपनी तरफ
जैसे आज है ही नहीं,
जैसे सत्य सिर्फ कल में छिपा है
एहसासों से भरपूर,
जिसे महसूस करते ही मैं 
छू लूंगा आखिरी छोर को,
पुरानी धूप की खुशबू,
पहली बार कुछ घटने पर
अंदरूनी खुशी की खुशबू,
कुछ आवाजों की खुशबू,
नितांत एकांत की खुशबू,
खुशबू उस शाम की
जो कभी बीती ही नहीं,
खुशबू उस रात की
जो ख्वाब बिना ही बीत गई,
ये अनंत खुशबू,
ये खुशबू ही प्रमाण है
कि हम कभी थे
पूर्ण रूप से थे,
किंतु ये एहसास लघु है,
देखते ही देखते
मैं मृग हो जाऊंगा,
और ये खुशबू कस्तूरी,
और जीवन रूपी जंगल 
में मैं तलाश में रहूंगा
सिर्फ खुशबू के
जिसका स्त्रोत मैं खुद हूं।



कहानी की तरह

एक फिक्र में डूबा चांद,
एक जलता हुआ गुमान,
अश्कों से भरा आसमान,
ईंटो का खाली मकान,
सब छोड़ दिया जाएगा
पानी की तरह,
मुझे इल्म है,
सब गढ़ा जाएगा फिर से
कहानी की तरह।
वो कहानी फिर वैसी ना होगी,
जो सोची गई थी,
वो लिखी जाएगी सच की कलम से,
गंदी, घिनौनी, मुंह फेर लेने लायक,
वो होगी सबकी कहानी,
मेरी, तुम्हारी, और सबसे ज्यादा उनकी 
जिन्होंने बोला झूठ खुद से,
मिला जब भी मौका
मुंह फेर लिया गया,
आंखें मूंद ली गईं
एक फरेब के पीछे।
मुझे ये भी इल्म है,
बिना वस्त्रों के खड़ी कहानी भी 
बन कर रह जाएगी बस कहानी।
वो चढ़ा दी जाएगी खुलेआम 
उसूलों की फांसी पर
किसी कुर्बानी की तरह,
वो पढ़ी जाएगी फिर से
बस कहानी की तरह।