वो ठहरा हुआ कैसे है?
एकदम अडिग खड़ा है,
चहरे की मायूसी भी मानो
उभरने का एहसान सा कर रही है,
मगर हाँ, कदम एकदम पक्के है,
जैसे कभी गिरेगा नहीं,
और जैसे कभी गिरा ही नहीं |
हाथो से किस्मत गुम सी है,
आँखों में सपनो का चूरा है,
मानो उसका हर ख्वाब अधूरा है |
मालूम पड़ता है,
उसने कदमो तले कुछ दबा रखा है |
भला क्या?
शायद डर, सहमापन, दर्द, मजबूरी, उदासी
एक मुठी ख़्वाहिश, और
कुछ भी महसूस न होने का एहसास |
मुझे हैरानियत अभी तक घेरे है कि..
वो ठहरा हुआ कैसे है?

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