Saturday, 30 November 2024

जीवन और त्रासदी

नन्ही सी आँखें
जब बड़े सपने देखती है,
वो सपना नहीं जीवन होता है,
पलके हल्की होने लगती है,
नजरें आसमां को भेद रही होती है,
मृत पड़ी आंखे चमक उठती है,
उन चमकती आंखों में 
जीवन पनपता है,
ये महान दृश्य
कभी कभी घटता है।

वही नन्ही सी आँखें,
जब सपने देखना छोड़ देती है,
वो कृत नहीं मृत होती है,
पलके भारी होने लगती है,
कांधे टूटने लगते है,
नजरों की धार खोने लगती है,
वो चमक गुम होने लगती है,
वो गहरी आँखें
जो समस्त संसार को समेट सकती है,
जो जीवन को भी भेद सकती है,
उन बेजान आंखों से
टपकती है त्रासदी,
त्रासदी जो जीवन में 
स्याह रंग भरती है,
इस इंतजार में कि कभी
इस पर सपनो की चमक गिरेगी,
और ऐसा लगेगा जैसे
तारे पिघल कर आँखों में
उतर आए हो।

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