Tuesday, 5 May 2020

मुसाफ़िर !


हर राह मुसाफ़िर चलना है,
हर शाम में तुझको ढलना है | 

अपने मन की खिड़की खोल कर,
दो शब्द प्यार के बोल कर,
हर गम को हँसकर निगलना है,
हर राह मुसाफिर चलना है,
हर शाम में तुझको ढलना है | 

अनजानो की नगरी मे,
लोगों की बेसब्री मे,
खुद को पल-पल ढूंढ़ना है,
हर राह मुसाफ़िर चलना है,
हर शाम में तुझको ढलना है | 

ये रात रोज आएगी,
साथ अँधेरा भी लाएगी,
इस अँधेर विशाल रात मे,
आहिस्ता-आहिस्ता जलना है,
हर राह मुसाफ़िर चलना है,
हर शाम में तुझको ढलना है | 

फिर सुबह की किरणो मे,
खुद को निर्मल सा पा लेना तू,
सात रंग ख्वाबो के,
आँखों मे सजा लेना तू,
तू है मुसाफ़िर ~ 
तुझे हर पनघट से गुजरना है,
हर राह मुसाफ़िर चलना है,
हर शाम में तुझको ढलना है | 


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