Arts Faculty, Delhi
मेरी रातें कुछ कहती है सुबह से…
कि तू कितना भी इतराले रौशनी पर अपनी,
मगर तू दिखा नहीं सकती वो लब्ज़ बेजुबां से…
वो ज़ुबान सिर्फ मैं जानती हूँ |
मेरी रातें कुछ कहती है सुबह से…
मैं पर्दा करती हूँ तो तू हटाती है,
जैसे कोई जुस्तजू है ख़ुदा की,
मगर तू दिखा नहीं सकती वो जज़्बात हवा से…
जो इन पर्दो में झूलते है,
वो एहसास सिर्फ मैं जानती हूँ |
मेरी रातें कुछ कहती है सुबह से…
खामोश कौन है, मैं या तू ?
अक्सर ज़ुबान की बातें सुनती है तू,
मगर मेरी आगोश में तो दिल भी बातें करते है,
वो बातें सिर्फ मैं जानती हूँ |
हर रोज नए सितारे आते है,
मेरे जहाँ में तेरे जहाँ से,
उन सितारों पर हक़ तेरा भी है,
मगर उन्हें सिर्फ मैं पहचानती हूँ,
मेरी रातें कुछ कहती है सुबह से… | |

Such soothing expression. loved it. ��
ReplyDeleteThanks dear! I'm glad you loved this piece. Keep Loving 💙
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