Tuesday, 2 August 2022

प्रतिमाएं

जो प्रतिमाएं बड़े सम्मान से खड़ी की गई है किसी के सम्मान में, मैं उनमें विचार भरना चाहता हूं। नहीं तो यह कितनी दिल जलाने वाली बात है कि वह महान व्यक्ति जिसके लिए लाखों किताबें स्याह कर दी गई हो, उस महान व्यक्ति की प्रतिमा एकदम आम तरीके से सबके बीच से निकल जाती हो। जैसे कोई अनजान व्यक्ति आंखों के आगे से गुजर जाता है, जिसको देखकर हमें कुछ महसूस नहीं होता। और जैसे वह प्रतिमा मात्र भीड़ का एक हिस्सा है और हम भी। वह भीड़ जो हम से बनी हैं और जिसकी शक्ल और विचार हमसे मिलते हैं। प्रतिमाएं भीड़ में कब तब्दील हो जाती हैं पता ही नहीं चलता। फिर उस प्रतिमा की शक्ल और विचार भी भीड़ से मिलने लगते है और उसमें अब महान जैसा कुछ शेष नहीं रह जाता। वह कितनी बेजान तरीके से खड़ी रहती है या यूं कहो की भीड़ कितनी बेजान आंखों से उसके पास से गुजर जाया करती है। इसलिए मैं उन सभी प्रतिमाओं में विचार भरना चाहता हूं। मगर यदि सच में कोई प्रतिमा बोल उठे और विचार प्रकट करने लगे तो क्या भीड़ की बेजान आंखों में जान लौट आएगी? शायद हां, मगर थोड़ी देर के लिए और कुछ ही देर में हम फिर से उसे बेजान प्रतिमा बना देंगे। अब किसी प्रतिमा के आगे से गुजरता हूं तो उसे देर तक निहारता हूं, उसका विचार प्रकट करना मेरी आंखों के जीवित होने का प्रमाण होता है।