Monday, 16 May 2022

थोड़ा आसमां



चलो अपना अपना एक आसमां चुनते है,
एक आसमां तुम्हारा होगा,
और एक आसमां मेरा,
तुम्हारे आसमां और मेरे आसमां
में कोई ज्यादा फर्क नहीं है
वह एक जैसे ही है,
सिवाय इसके की
इन आसमानों का विभाजन हो चुका है,
अब इन्हें असहमिय पीड़ा के साथ
हमे इन्हें खुद में बांटना होगा,
हम हर आसमां नही चुन सकते
उन्हें एक भी नही समझ सकते,
ये आज़ादी हर किसी से छीन ली गई है,
तुम थोड़ा थोड़ा हर कुछ होकर
अजीबो-गरीब लगोगे सबको,
तुम्हे एक होना होगा,
पूरा एक,
थोड़ा थोड़ा सब नही,
और वो भी "एक" आसमां के नीचे,
फिर चाहे आसमानों के विभाजन में 
विभाजित हो जाए हम सब भी।

अव्यक्त



एक बची हुई नींद तुम्हारी, 
एक सुबह की सरसरी ठंड, 
एक बची हुई खामोशी, 
और कभी ना गिरने वाला आँसू, 
ये सब दफ्न है बस एक परत नीचे। 
वो ज्यादा गहरे दफ्न नहीं है, 
बस एक परत नीचे। 

असल में सब महसूस होना कोई बड़ी बात नही है, 
बस खूबसूरत बात है। 
मगर परत उनको ढके रखती है, 
और हमको एहसास दिलाती है की हम अलग दुनिया के लायक है, 
नाकि इस दुनिया के जो दफ्न है,
बस एक परत नीचे। 

और जब कभी भी परत हटती है, 
तो सारे भाव एकसाथ चेहरे पर उतर जाते है, 
तुम्हारी बची हुई नींद का कुछ हिस्सा मैं सो लेता हूं, 
सरसरी ठंड मेरे कंधे पर बैठ जाती है, 
खामोशी और गहरी होने लगती है, 
कभी ना गिरने वाला आँसू अब गिरता है, 
अंततः जीवन होने का अर्थ समझ आने लगता है।