Tuesday, 2 August 2022

प्रतिमाएं

जो प्रतिमाएं बड़े सम्मान से खड़ी की गई है किसी के सम्मान में, मैं उनमें विचार भरना चाहता हूं। नहीं तो यह कितनी दिल जलाने वाली बात है कि वह महान व्यक्ति जिसके लिए लाखों किताबें स्याह कर दी गई हो, उस महान व्यक्ति की प्रतिमा एकदम आम तरीके से सबके बीच से निकल जाती हो। जैसे कोई अनजान व्यक्ति आंखों के आगे से गुजर जाता है, जिसको देखकर हमें कुछ महसूस नहीं होता। और जैसे वह प्रतिमा मात्र भीड़ का एक हिस्सा है और हम भी। वह भीड़ जो हम से बनी हैं और जिसकी शक्ल और विचार हमसे मिलते हैं। प्रतिमाएं भीड़ में कब तब्दील हो जाती हैं पता ही नहीं चलता। फिर उस प्रतिमा की शक्ल और विचार भी भीड़ से मिलने लगते है और उसमें अब महान जैसा कुछ शेष नहीं रह जाता। वह कितनी बेजान तरीके से खड़ी रहती है या यूं कहो की भीड़ कितनी बेजान आंखों से उसके पास से गुजर जाया करती है। इसलिए मैं उन सभी प्रतिमाओं में विचार भरना चाहता हूं। मगर यदि सच में कोई प्रतिमा बोल उठे और विचार प्रकट करने लगे तो क्या भीड़ की बेजान आंखों में जान लौट आएगी? शायद हां, मगर थोड़ी देर के लिए और कुछ ही देर में हम फिर से उसे बेजान प्रतिमा बना देंगे। अब किसी प्रतिमा के आगे से गुजरता हूं तो उसे देर तक निहारता हूं, उसका विचार प्रकट करना मेरी आंखों के जीवित होने का प्रमाण होता है।

Monday, 16 May 2022

थोड़ा आसमां



चलो अपना अपना एक आसमां चुनते है,
एक आसमां तुम्हारा होगा,
और एक आसमां मेरा,
तुम्हारे आसमां और मेरे आसमां
में कोई ज्यादा फर्क नहीं है
वह एक जैसे ही है,
सिवाय इसके की
इन आसमानों का विभाजन हो चुका है,
अब इन्हें असहमिय पीड़ा के साथ
हमे इन्हें खुद में बांटना होगा,
हम हर आसमां नही चुन सकते
उन्हें एक भी नही समझ सकते,
ये आज़ादी हर किसी से छीन ली गई है,
तुम थोड़ा थोड़ा हर कुछ होकर
अजीबो-गरीब लगोगे सबको,
तुम्हे एक होना होगा,
पूरा एक,
थोड़ा थोड़ा सब नही,
और वो भी "एक" आसमां के नीचे,
फिर चाहे आसमानों के विभाजन में 
विभाजित हो जाए हम सब भी।

अव्यक्त



एक बची हुई नींद तुम्हारी, 
एक सुबह की सरसरी ठंड, 
एक बची हुई खामोशी, 
और कभी ना गिरने वाला आँसू, 
ये सब दफ्न है बस एक परत नीचे। 
वो ज्यादा गहरे दफ्न नहीं है, 
बस एक परत नीचे। 

असल में सब महसूस होना कोई बड़ी बात नही है, 
बस खूबसूरत बात है। 
मगर परत उनको ढके रखती है, 
और हमको एहसास दिलाती है की हम अलग दुनिया के लायक है, 
नाकि इस दुनिया के जो दफ्न है,
बस एक परत नीचे। 

और जब कभी भी परत हटती है, 
तो सारे भाव एकसाथ चेहरे पर उतर जाते है, 
तुम्हारी बची हुई नींद का कुछ हिस्सा मैं सो लेता हूं, 
सरसरी ठंड मेरे कंधे पर बैठ जाती है, 
खामोशी और गहरी होने लगती है, 
कभी ना गिरने वाला आँसू अब गिरता है, 
अंततः जीवन होने का अर्थ समझ आने लगता है।