Thursday, 16 September 2021

हिचकी !




बचपन में जब कभी हिचकी खूब सताती थी तो कहा जाता था कि कोई अपना तुम्हे बहुत दिल से याद कर रहा है। साथ ही उसको रोकने के उपाय भी बताए जाते थे जैसे कि अपने प्रिय लोगो के नाम लो जो कोई भी तुम्हें याद कर रहा है। अगर उसका नाम ले लोगे तो हिचकी रुक जाएगी। और इसी खेल खेल में दो चार नाम लेने के बाद हिचकी रुक भी जाय करती थी। तब यह किसी जादू से कम नहीं लगता था। उस वक़्त जिस नाम से हमें सबसे ज्यादा उम्मीद होती थी कि वह व्यक्ति हमें याद कर रहा होगा, उसका नाम लेने की पश्चात् हम थोड़ा ठहरते थे, कभी सफलता हाथ लगती थी तो कभी नहीं। मगर एक मुस्कान चेहरे पर बैठी रहती थी। अब इतने सालो बाद कब ये खेल आदत में तब्दील हो गया, इसका पता ही नहीं चला। हिचकियां अब ज्यादा दुखी नहीं करती। और कभी करती भी है तो मन आदतन खुद ब खुद कुछ नाम दोहराना शुरू कर देता है, मगर ज्यादातर अंत में पानी पीकर ही इससे पीछा छुड़ाना पड़ता है। इससे बचपन के विश्वास पर गहरा आघात तो होता है पर इससे पहले कि वो विश्वास दगमगा कर पूरी तरह गिर जाए, कुछ सफलताएं आकर उस आदत को बने रहने का बहाना दे जाती हैं।
आज सुबह से हिचकी बहुत दुखी कर रही है। बाकी कार्य रोजमर्रा की तरह घटित हो रहे है। बस घर में थोड़ी ज्यादा शांति है। मां की आंखो में एक अलग सी स्थिरता है जैसे वह कहीं गुम हो चुकी है। वो शायद इसीलिए भी क्यूंकि कल में कुछ महीनों के लिए घर से दूर चला जाऊंगा। जब हमे पता होता है कि कोई अपना जाने को है और कल वो हमसे थोड़ा दूर होगा। तो हम आज की बजाए कल में प्रवेश कर जाते है। हम इस विचार में गुम रहते है कि कल उसके जाने के पश्चात उसकी कितनी याद आएगी। हम उस याद को याद करते है जो हमें कल आने वाली है जब वह कोई अपना चला जाएगा। और हम आज में रहकर भी उस क्षण में होते है जब वह व्यक्ति जा चुका है और हम उसकी याद में डूबे है। बल्कि आज उसके साथ रहकर भी हम उसी को याद कर रहे होते है। कितना खूबसूरत अपनापन है इसमें। घर में जो अतिरिक्त शांति बिखरी पड़ी है उसका स्त्रोत मां के चेहरे पर कहीं है। इन सब विचारों के बीच मैने एहसास किया की मां मेरे सामने पानी का ग्लास लेकर खड़ी है। मेरे मुंह से निकला ' मां ' , मैं थोड़ा ठहरा और हिचकी रुक गई।

Monday, 24 May 2021

तला और आसमां !



एक तला है समतल सा 

दूर दूर तक सीधी ज़मीन,

जिससे भयंकर तपिश बहती है,

मानो उसके गर्भ की अग्नि

आजाद होना चाहती है,

उसका रूप उग्र है क्यूंकि

वो अनंत भूख की अग्नि है,

उस तले में जगह जगह

तरेड़ो ने रेखाएं बना ली है,

उसमे कोई कान लगाए तो

वो विलाप की चीखे सुन सकता है।


इन सबके ठीक ऊपर

मगर बहुत दूर,

एक खुला आसमां है,

देखने में शांत और आशावादी,

वहां तक तपिश अलग रूप

में पहुंचती है एकदम ठंडी,

वो उग्र भाव मर चुका होता है,

उस आसमां की अपनी अलग भूख है,

वो सांसों का भूखा है,

उनसे ही वो ज़िंदा है और 

उसकी शोभा है,

वहां विलाप नहीं बस सन्नाटा है।


तले को मृग तृष्णा है कि

वो आसमां से मिल सकता है,

ये वहम आसमां को नहीं है

उसे सब साफ नज़र आता है,

दोनों अपनी अनंत भूख

मिटाने में व्यस्त है,

और दोनों के बीच एक 

अनादि मूक संवाद स्थापित है,

जिसका उन्हें कोई ज्ञात नहीं,

दोनों एक दूसरे को निहार रहे है

बस आंखो में गहरी उम्मीद लिए।।