मैं टूट कर बिखर जाऊ,
फिर कतरा कतरा छनु ,
जैसे मिट्टी में चूर,
खुद को ही स्पर्श करू|
मैं बट जाऊ टुकड़ों में,
फिर कोई वजूद ना हो,
अनगिनत रंग समेटु,
मीठी सी खुशबू लिए,
मैं किरणों मे लिपट जाऊ,
फिर हर हलचल पर मचलु,
अग्नि से भी तेज जलू,
हर आरज़ू आखिरी सांस ले|
मैं फिर निखरू ऐसे,
जैसे भव्य गाथा का
आगाज़ हुआ हो,
कतरा कतरा फिर बनूं
जैसे ज़िन्दगी का
एहसास हुआ हो ||



